इस पोस्ट में हम पड़ेंगे कि किस तरह अर्जुन और शिव जी के बीच युद्ध हुआ जब अर्जुन युधिस्ठिर की आज्ञा से स्वर्ग जाने के लिए निकले थे । अभी तक हमने पड़ा कि किस तरह वन में बहुत सारे राजा पांडवों से मिलने आए और वहीं पर भगवान कृष्ण भी आए । भगवान ने बताया कि वे उस वक्त कहां थे जब चौसर का खेल खेला जा रहा था । भगवान ने द्रोपदी को यह आश्वासन दिलाया कि उनके अपमान का बदला जल्द ही लिया जाएगा और सारे शत्रु पांडवों के द्वारा मारे जायेंगे ।
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द्रोपदी ने धर्मराज युधिष्ठिर को यह समझाने की कोशिश की कि उन्हें वन में न रहकर कौरवों से युद्ध करके अपना राज्य वापिस ले लेना चाहिए । लेकिन युधिस्ठिर ने कहा कि उन्होंने प्रतिज्ञा ली थी की जो पक्ष हारेगा वह वनवास और अज्ञातवास के लिए जायेगा इसलिए वे अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ेंगे ।
इस पोस्ट में हम पड़ेंगे आगे की कहानी । अगर आपने पिछले पोस्ट को नहीं पड़ा है और पड़ना चाहते हैं तो आगे क्लिक करके पड़ सकते हैं – जब शकुनी ने कपटपूर्वक चौसर खेला तब भगवान कृष्ण कहां थे ।
युधिस्ठिर ने कहा कि इस समय कौरव बहुत अधिक बलशाली हैं
द्रोपदी के बाद भीम ने युधिस्ठिर को समझाने की कोशिश की । भीम ने कहा कि पांडवों को हर कोई जानता है इसलिए वे एक वर्ष छिपकर केसे रहेंगे । भीम ने कहा कि महीने वर्षों के प्रतिनिधि होते हैं इसलिए वे 13 महीनों को इस कठिन समय में 13 वर्ष गिना जा सकता है । भीम ने युधिस्ठिर से कहा कि आप क्षत्रिय हैं इसलिए आपके लिए एक मात्र धर्म युद्ध है इसलिए आप युद्ध के लिए तैयार हों और 13 वर्ष वनवास का विचार त्याग दें ।
युधिस्ठिर ने कहा कि कौरवों की सेना में भीष्म, कर्ण, दुशासन, द्रोण, कर्ण, शल्य, अश्वत्थामा जैसे महाबली हैं । उन्होंने कहा कि जिन राजाओं को पांडवों ने पहले अपने अधीन किया हुआ था वे भी अब कौरवों से मिल गए हैं । भीस्म, द्रोण और कृपाचार्य जेसे महारथियों के रहते ऐसी स्थिति में देवताओं के लिए भी कौरवों को जीत पाना संभव नहीं है ।
युधिस्ठिर सोच ही रहे थे कि वे कौरवों को केसे जीतेंगे इतने में व्यास देव वहां आ गए और उन्होंने युधिस्ठिर को प्रतिस्मृति नाम की एक विद्या दी । व्यास देव ने कहा कि युधिस्ठिर भविष्य में यह विद्या अर्जुन को सिखा दें । व्यास देव ने कहा कि अर्जुन नारायण के सहचर नर ऋषि हैं इसलिए अर्जुन को कोई नहीं जीत सकता, उन्होंने युधिस्ठिर से कहा कि अर्जुन ही तुम्हारा राज्य शत्रुओं से जीत सकते हैं और तपस्या के बल पर देवताओं से मिलने की योग्यता रखते हैं ।
व्यास देव ने धर्मराज युधिस्ठिर को यह आज्ञा दी कि वे अर्जुन को देवराज इंद्र, वरुण देव, शिव, कुबेर और यमराज के पास शास्त्र विद्या सीखने भेजें जिससे अर्जुन आने वाला युद्ध जीत सकें ।
धर्मराज ने व्यास देव से प्राप्त हुई वह विद्या अर्जुन को सिखा दी और कहा कि भीष्म, द्रोण, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, कर्ण आदि युद्ध कला में मर्मज्ञ हैं इसलिए अब केवल तुम ही आने वाला युद्ध जीत सकते हो ।
धर्मराज ने अर्जुन से कहा कि यह विद्या लेकर तुम्हें सारे लोक दिखने लग जायेंगे इसलिए तुम उत्तर दिशा में जाकर तपस्या करो और देवराज इंद्र को प्रसन्न करो । युधिस्ठिर ने कहा कि वृत्रासुर से भयभीत होकर सारे देवताओं ने अपने अस्त्र इंद्र को दे दिए थे इसलिए तुम इंद्र को प्रसन्न करके वे अस्त्र उनसे ले लो ।
अर्जुन और शिव जी का युद्ध
अर्जुन उत्तर दिशा में जाकर गंधमाधन पर्वत से होते हुए एक पर्वत के पास पहुंचे । वहां अर्जुन को एक महात्मा मिले और उन्होंने अर्जुन से धनुष फेक देने को कहा । अर्जुन ने ऐसा नहीं किया और कुछ समय बाद वे महात्मा अपने असली रूप में आ गए और कहा कि वे इंद्र हैं । अर्जुन ने इंद्र से दिव्य अस्त्र मांगे लेकिन इंद्र ने कहा कि अर्जुन शिव जी की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करें और उसके बाद जब वे स्वर्ग आएंगे तब इंद्र उन्हें सारे दिव्य अस्त्र प्रदान करेंगे ।
उसके बाद अर्जुन ने पहले महीने हर तीन दिन के अंतर पर पेड़ से गिरे सूखे पत्ते खाए । दूसरे महीने 6 दिन के अंतर पर और तीसरे महीने 15 दिन के अंतर पर सूखे पत्ते खाए । चौथे महीने अर्जुन ने कुछ नहीं खाया और पैर के अंगूठे के बल पर खड़े होकर तपस्या करने लगे । इसके बाद शिव जी अर्जुन की तपस्या से प्रसन्न हुए और एक भील के रूप में अर्जुन की परीक्षा लेने आए ।
जब शिव जी भील के रूप में अर्जुन के पास आए तो पाया कि मूक दानव शूकर का रूप लेकर अर्जुन को मारना चाहता था । भील ने उसे मारने के लिए अपने धनुष पर बाण चढ़ा लिया । उधर अर्जुन को भी सूकर का सच मालूम हो गया था और उन्होंने भी उसे मारने के लिए धनुष पर बाण चढ़ा लिया था । भील ने कहा कि सूकर उनका शिकार है और अर्जुन ने कहा कि वह उनका शिकार है ।
अर्जुन नहीं माने और उन्होंने अपना बाण छोड़ दिया । भील ने भी अपना बाण छोड़ दिया और वह शूकर मारा गया । अर्जुन ने भील से कहा कि वह उनका शिकार था इसलिए भील को ऐसा नहीं करना चाहिए था । भील ने कहा कि इतने ही महाबली हो तो मुझे अपना बल दिखाओ ।
अर्जुन ने भील पर बाणों से हमला कर दिया लेकिन भील ने सारे बाण अपने हाथ से ही पकड़ लिए । अर्जुन की तलवार को भील ने तोड़ दिया और गांडीव धनुष छीन लिया । इसके बाद भील ने अर्जुन को एक घूंसा मारा और अर्जुन को कसकर दबा लिया जिससे अर्जुन मूर्छित हो गए ।
जब अर्जुन को होश आया तो उन्होंने एक वेदी बनाकर शिव जी की पूजा करना शुरू कर दी । अर्जुन ने देखा कि वे जो भी पुष्प और माला वेदी पर चढ़ाते थे वह भील के ऊपर आ गया करते थे ।
यह देखकर अर्जुन ने भील को प्रणाम किया तब शिव जी ने अर्जुन से कहा कि वे उनसे प्रसन्न हैं । शिव जी ने कहा कि अर्जुन का तेज और बल शिव जी के समान है और अर्जुन के समान कोई और क्षत्रिय नहीं है । शिव जी ने अर्जुन को अपना असली रूप दिखाया जिसके बाद अर्जुन ने उनको एक बार फिर प्रणाम किया ।
शिव जी ने अर्जुन को पशुपताश्त्र अस्त्र दिया और कहा कि अर्जुन नारायण के सहचर नर ऋषि हैं । शिव जी ने कहा कि अर्जुन और भगवान कृष्ण ने इंद्र के अभिसेख के समय राक्षसों का संहार किया था और अर्जुन और भगवान कृष्ण की वजह से ही यह संसार टिका हुआ है ।
शिव जी ने कहा कि अगर पशुपताश्त्र किसी अयोग्य व्यक्ति पर छोड़ दिया जाए तो यह संसार का खात्मा कर देता है इसलिए इसे किसी योग्य और बलशाली व्यक्ति पर ही छोड़ना । शिव जी ने अर्जुन का गांडीव धनुष वापिस देकर उन्हें स्वर्ग की यात्रा करने के लिए कहा ।
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