मनुष्य जीवन में मरने में के पहले एक बार भगवान के दर्शन हो जाएं तो सबसे बड़ी बात है । मरने के बाद ये निश्चित नहीं है कि मनुष्य का शरीर ही दोबारा मिलेगा । देवता बनने पर भी आनंद नहीं मिलेगा । चाहे देवता हो या जानवर दोनो ही भोग योनियां हैं ।
केवल मनुष्य योनि ही कर्म योनि है । इस योनि में अगर हम निश्चित कर लें कि हमें इस जीवन में भगवान के दर्शन करने हैं तो भगवान हमें अपने दर्शन देने में लायक बनाएंगे । भजन का आनंद लेना चाहिए, भजन भावना से होता है । जो भक्ति नीरस होता है उसे भजन में भी आनंद नहीं मिलता ।
गोस्वामी जी ने दोहावली कही है कि यदि भगवान की कथा सुनकर आंख में आंसू न आ जाएं तो ऐसी आंखों में धूल भर कर डालना चाहिए । इसके बाद यह भी कहा कि