राम जी के वनवास के बाद भरत की क्या दशा हुई

राम जी के वनवास के बाद भरत की क्या दशा हुई

भरत ने कहा कि में बड़ा पापी हूं क्योंकि मेरे कारण भगवान के वन जाना पड़ा । रामचरित मानस में राम जी का धर्म सामान्य है । लक्ष्मण जी का धर्म विशेष धर्म है । राम जी ने लक्ष्मण जी को समझाया कि आप घर पर रहिए क्योंकि जिस राजा के राज्य में की दुखी रहती है उसे नरक जाना लड़ता है इसलिए तुम राज्य संभालो में वन जाता हूं ।

लक्ष्मण जी का विशेष धर्म है और वे कहते हैं कि आप ही हमारे सब कुछ हैं । देखो प्रभु हम सेवक और आप स्वामी, आप जो कह देंगे हमे मानना पड़ेगा लेकिन अगर आप मुझे यहीं छोड़ कर चले जाएंगे तो मेरे प्राण निकल जाएंगे । लक्ष्मण जी कहते हैं जहां राम हैं वहीं अयोध्या है । जहां अयोध्या है वहीं लक्ष्मण रहेंगे इसलिए हम आपको छोड़ कर कहीं नहीं जायेंगे ।

भरत जी का धर्म लक्ष्मण जी से भी ऊपर का धर्म है । भरत जी से ऊपर शत्रुघ्न जी का धर्म है । भरत जी ने राज्य का प्रस्ताव ठुकरा दिया । आज के समय में तो भाई का वध करके राजा बनने वाले भाई देखे जाते हैं लेकिन भरत जी को उनके गुरु वसिष्ठ ने समझाया लेकिन वे राजा नहीं बने ।

आज तक वसिष्ठ जी की आज्ञा का किसी ने उल्लंघन नहीं किया लेकिन भरत जी ने वशिष्ठ जी से कहा कि गुरु जी में बड़ा पापी हूं लगता है मेरे पापों के कारण आपकी भी बुद्धि खराब हो गई है । भरत जी ने कहा कि मुझे लगता था आप मेरे पक्ष में कहेंगे । आप को त्रिकाल दर्शी हैं आप को पता नहीं था कि ऐसा होगा ।

वसिष्ठ जी ने भरत को क्या शिक्षा दी

वसिष्ठ जी ने कहा कि मुझे पता था लेकिन अगर में राम जी को रोक लेता तो प्रभु की हंसी होती । भरत जी ने कहा कि हमें तो रोको कि हम राजा ना बने । वसिष्ठ जी कहते हैं कि मुझे बुढ़ापे ने घेर लिया है और राम जी वन जाने के बाद मेरी बुद्धि काम नहीं कर रही है । भरत जी ने गुरु जी से क्षमा मांगी और कहा कि में राजा नहीं बनूगा और राम जी को मनाने के लिए चित्रकूट जाऊंगा । भरत जी कहते हैं कि राम के दर्शन करके ही उनके मन का दुख मिटेगा ।

सारे अवध वासी तैयार हो गए और भरत के साथ राम जी को मनाने के लिए चित्रकूट जाने लगे । माता कैकई भी उनके साथ गईं । भरत जी रथ से नहीं बल्कि पैदल ही गए । जब लोग भरत जी को रोते हुए देखते तो सबको लगता कि कैकई माता ने राम जी को वन में भेजकर बड़ी गलती की । भरत जी को देखकर सबको लगा कि इनके साथ राम जी को जरूर वापिस आना चाहिए ।

भरत जी भारद्वाज के दर्शन करने गए । जब भारद्वाज ने उनकी दशा देखी तो कहा कि हमने बड़ी तपस्या की । हमने सोचा कि तपस्या का फल क्या है लेकिन जब हमें राम ने दर्शन दिए तो पता चला कि सारी तपस्या का फल है राम जी दे दर्शन ।

भरत जी का विलाप सुनकर पत्थर और ब्रक्ष भी रोने लगते । जब चित्रकूट में महात्माओं को पता चला कि भरत राम जी को वापिस ले जाएंगे तो राक्षसों का संहार और भक्तों का उद्धार कैसे हो पाएगा । लेकिन जब महात्माओं ने भरत जी को रोते हुए देखा तो उनको लगा कि राम जी को वापिस जरूर जाना चाहिए ।

भरत और राम का मिलन

जैसे ही भरत के विलाप को पत्थर सुनते तो वे पिघल जाते थे । लोग भरत जी की दशा को देखकर उनको को राम जी के दर्शन कराने के लिए ले गए । भरत जी राम जी के पीछे की तरफ से गए ।

लक्ष्मण जी कहते हैं कि लगता है भरत युद्ध करने के लिए आ रहे हैं । राम जी कहते हैं कि मेरे भाई को राज्य का मद नहीं हो सकता । भरत जी ने राम जी को पीछे से प्रणाम करने का सोचा । राम जी ने भी सोचा कि हम भी उल्टे जाकर भरत को मिलेंगे । भरत जी और राम जी का सामना सामना हो गया । भरत जी कहने लगे कि प्रभु बचपन में जब हम हारने लगते थे तो आप हमें जिता देते थे । राम जी सबसे पहले कैकई माता को प्रणाम करते हैं । कैकई राम जी को वनवासी के वस्त्रों में देखकर बड़ी रोने लगीं लेकिन राम जी उस समय मुस्कुरा रहे थे ।

भरत जी ने कहा कि में वनवास के लिए जाता हूं आप राज्य संभाले । अंत में जनक जी भी आते हैं और कहते हैं कि भरत जी की बात मान लेनी चाहिए । राम जी मना कर देते हैं तो भरत जी रोने लगते हैं । राम जी के पक्ष में कोई नहीं था यहां तक कि जानकी जी और लक्ष्मण जी ने भी कहा कि आपको वापिस जाना चाहिए । राम जी ने भरत से ही पूछा कि जो तुम कहोगे वहीं हम मानेंगे । भरत जी ने कहा कि प्रभु आपका मन प्रसन्न हो वही करें । राम जी ने कहा कि तुम अयोध्या का राज्य संभालो हम वनवास जाते हैं ।

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