जानिए कैसे साईं बाबा ने पानी से दीये जलाये

दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं। उस शख्स की जिन्होंने पानी से दिए जलाए थे। जी हां आज बात करने वाले हैं। साईं बाबा की असली शुरू करते हैं। साईं बाबा का जन्म 28 सितंबर 1835 को पाथरी महाराष्ट्र में बताया जाता है। लेकिन इस बात का कोई पक्का सबूत नहीं है। साईं बाबा एक महान संत थे। यद्यपि साईं बाबा एक फकीर के वेशभूषा में रहते थे, लेकिन वह तो तीनों लोकों के ज्ञाता थे और पूरी दुनिया में सतगुरु के नाम से विख्यात है। साईं बाबा को समाधि लिए। अब 100 वर्ष से भी ज्यादा होने वाले हैं, परंतु आज भी बाबा हम सबके बीच उपस्थित है।

जब कोई भक्त साईनाथ को दिल से याद करता है। बाबा से उसकी सहायता के लिए वर्तमान हो जाते हैं। कहीं साईं भक्तों ने बाबा को अपने आसपास महसूस किया है। साईं बाबा एक मस्जिद में रहते थे जो पहले खंडहर थी। लेकिन बाद में भक्तों ने उसको ठीक-ठाक कर दिया था। मस्जिद के पास ही और भी कई स्थान थे जहां बाबा बिहार करते विश्राम करते और उपदेश देते थे। साईं बाबा के शिर्डी में आने के बाद से शिरडी और आसपास के मुसलमान हिंदुओं के साथ दीपावली का त्यौहार बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाने लगे थे। उसी तरह ईद मनाई जाती थी। संध्या के समय साईं बाबा गांव में जाकर दुकानदारों से भिक्षा में तेल मांगते और मस्जिद में दिया जलाया करते थे।

एक दिन एंड दिवाली के वक्त जब दुकानदारों से बाबा तेल मांगने गए तो उन्होंने तेल देने से इंकार कर दिया। गांव के प्रत्येक दुकानदार ने बाबा को यह कहते हुए तेल देने से इनकार किया कि आज तो उनके पास अपने घर में तेल चढ़ाने के लिए भी एक बूंद नहीं है। सभी दुकानदारों ने आपस में यह निश्चित किया था कि वह बाबा को भिक्षा में तेल ना दें और अपना महत्व बताएं। अहंकार से भरे इन दुकानदारों ने सोचा कि देखते हैं बाबा आज किस प्रकार में?

दिए जलाते हैं बता बाबा को खाली हाथ ही मस्जिद में लौटना पड़ा। साईं बाबा के मस्जिद में खाली हाथ लौटने पर उनके शिष्य निराश हो गए। भक्तों की निराशा को समझकर बाबरी मस्जिद के अंदर बने। कुएं में से एक घड़ा पानी भरकर खींचा। बाबा ने उस गाने में अपने डिब्बे में बचे हुए तेल की कुछ बूंदें डाल दी। बाबा इस डिब्बे में भिक्षा में तेल लाते थे।

वह चुपचाप खड़े। उनको यह सब करते देखते रहे। बाद में बाबा ने उस घड़े का पानी दियो मैं भर दिया। फिर रुई की बत्ती बनाकर उन दिनों में डाल दी और फिर बत्तियां जला दी। सारे जग मकड़जाल उठे। यह देखकर शिक्षा और भक्तों की हर आने का ठिकाना ना रहा। इस चमत्कार को शिर्डी वालों ने अपनी आंखों से देखा। इसी कारण साईं भक्त दिवाली के दिन भगवान का पूजन कर उनकी आर्थी करते आ रहे हैं

Leave a Reply