गरुड़ पुराण के अनुसार पत्नी के कर्तव्य क्या हैं

गरुड़ पुराण के अनुसार पत्नी के कर्तव्य

सनातन धर्म में पत्नी को पति की अर्धांगिनी कहा जाता है। अर्धांगिनी मतलब पति के शरीर का आधा हिस्सा आज से कई हजार साल पहले महाभारत में पितामह भीष्म के द्वारा कहा गया था पत्नी को हमेशा खुश रखना चाहिए क्योंकि पत्नी से ही वंश की वृद्धि होती है साक्षात माता लक्ष्मी का स्वरूप होती हैं।

गरुण पुराण के हिसाब से एक आदर्श पत्नी कि लक्षण जिन्हे हर एक पत्नी में होनी चाहिए। यह 4 लक्षण हैं जिनके आधार पर एक खुशहाल परिवार की इमारत खड़ी हो सकती है।

गृह कार्य में दक्षता

सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या
प्रियंवदा सा भार्या या पतिप्राणा सा भार्या या पतिव्रता

यह एक ऐसा इश्लोक है जिसमें एक आदर्श पत्नी के सबसे उत्तम गुण की बात की गई है और वह गुण हैं गृह कार्य में दक्षता मतलब एक पत्नी में घर के सभी कार्य को करने की निपुणता होनी चाहिए। किसी कार्य को करने में अथवा उसे अच्छे तरीके से पूर्ण करने में अंतर होता है।

इसलिए गरुण पुराण कहता है की पत्नी को गृह कार्य में निपुण अथवा दक्ष होना चाहिए। दक्ष का अर्थ होता है ना की किसी भी कार्य को करना किसी भी कार्य को अच्छे ढंग से करना। जैसे किसी भी कार्य को इस तरीके से करना कि लोग उसकी प्रशंसा करते रह जाएं।

गृहस्ती कम पैसों में चलानी आनी चाहिए

पत्नी को घर गृहस्ती कम पैसों में चलानी आनी चाहिए जिससे बचे हुए पैसे कभी मुश्किल में काम आ सके। जैसे आजकल की पत्नियां घर गृहस्ती का काम करने के बाद बाहर काम करके कुछ पैसे कमा लेती हैं जिसमें कोई भी बुराई नहीं है।

पत्नियों को जहां तक संभव हो वहां तक अपनी उपयुक्त जिम्मेदारियों को निर्वाहक भी करना चाहिए यही हम सनातनी के सत्कार है। अब बात करते हैं हम अगले गुण की।

पत्नी को हमेशा अपने पति से प्रेम पूर्वक बोलना

जैसा कि हम जानते हैं कि हमारी वाणी जिसके उचित इस्तेमाल से मनुष्य के जीवन में कई चमत्कार हो सकते हैं। परंतु अनुचित वाणी मनुष्य को बर्बाद भी कर सकती है। आपने अक्सर ऐसा होता हुए तो देखा ही होगा कि बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो अपनी उचित वाणी से कठिन से कठिन काम को भी आसान बना लेते हैं और कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी इसी वाणी से अपना बनता हुआ काम भी बिगाड़ लेते हैं।

वाणी का महत्व पत्नी के लिए और भी बढ़ जाता है। गरुण पुराण के मुताबिक पत्नी को हमेशा अपने पति से संयुक्त वाणी में ही बात करनी चाहिए यानी कि धीरे-धीरे एवं प्रेम पूर्वक बोलना क्योंकि जब इस प्रकार पत्नी पति से बात करती है तो पति भी उसकी बात ध्यान से सुनता है और अपनी क्षमता अनुसार उसकी इच्छा को पूरी करने का प्रयास करता है।

ससुराल वालों का सम्मान करना चाहिए

पत्नी का यह कर्तव्य बनता है कि पति के अलावा अपने ससुराल पक्षी के सभी लोगों का सम्मान करें और इसी तेरह प्यार पूर्वक बात करें। और कभी ऐसी कोई बात ना करें जिससे मन में कलेश पैदा होने की संभावना बनती है। यह भी एक ध्यान देने वाली बात है जिस घर में पत्नी क्लेश करते हैं उस घर पर हमेशा काल मंडराता रहता है।

दोस्तों अब बात करते हैं तीसरे गुण की आज के योग में पति पत्नी के रिश्ते बहुत ज्यादा खराब हो चुके हैं। छोटी-छोटी गलतफेमिया और आपसी तनाव के चलते पति पत्नी के रिश्ते में दरार पड़ जाती है और इसका मुख्य कारण हमारी संस्कृति का पतन है।

आज के मनुष्य पर पश्चात पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव बहुत ज्यादा पड़ चुका है जिस वजह से पति पत्नी के रिश्ते में आपसी दरार पढ़ने में समय नहीं लगता है। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हिंदू धर्म संसार का ऐसा पहला धर्म है जिसमें पति पत्नी के अचूक संबंध अथवा विवाह की व्यवस्था की गई है।

जिसके अनुसार पति पत्नी का रिश्ता 7 जन्म के लिए होता है और बाकी सभी धर्म के लोगों ने हिंदू धर्म से ही शादी करने की प्रथा प्रारंभ की इसके अलावा हिंदू धर्म में शादी की बात तो की गई है लेकिन उसमें तलाक की कोई भी व्यवस्था नहीं है यह कहा जाए तो हिंदू धर्म को तलाक की कभी जरूरत ही नहीं पड़ी जिस कारण से हमारे गरुण पुराण में तलाक शब्द की चर्चा ही नहीं की गई है।

जिसका मुख्य कारण यह है कि हमारे प्राचीन काल में पति पत्नी का संबंध इतना अचूक होता था कि कभी तलाक लेने की अथवा दूर होने की जरूरत ही नहीं पड़ी। हमारे धर्म के अनुसार यदि किसी इंसान की एक बार शादी हो जाए तो वह सात जन्म के लिए पति पत्नी के रिश्ते में बन जाते हैं और इसे किसी भी तरह से तोड़ा नहीं जा सकता है।

परंतु आजकल लोग तलाक लेने लगे हैं जिस वजह से शादी का पवित्र रिश्ते को अपने पहले ही जन्म में तो लेते हैं। गरुण पुराण के मुताबिक पत्नी को पति परायण होना चाहिए उसे अपने पतिव्रत का पालन करते हुए अपनी दृष्टि चलानी चाहिए। जो पत्नी अपने पति को सर्वस्थ मानती हो अथवा सदैव उसी के आदेशों का पालन करते हो उसे ही धर्म ग्रंथों में पतिव्रता कहा गया है।

पति की सेवा करनी चाहिए

एक पतिव्रता स्त्री सदैव अपने पति की सेवा में लगी रहती है। वह कभी गलती से भी अपने पति के मन को दिखाने वाली बात नही करती है। यदि कभी किसी कारण पति को कोई अपीरिये बात कहनी पढ़ते हो तो वो उसे भी बड़े ही समियत हो कर गंभीरता से कहती है ओर अपने पति को खुश रखने का पूरा पिरयाश करती है।

पति के अलावा वो कभी भी किसी दूसरे पुरुष का विचार नहीं करती है। अब बात करते है अखरी गुण याने की चौथे गुण की। एक पत्नी का सबसे पहला धर्म तो यही है की वो अपने पति के साथ साथ अपने पूरे परिवार का अच्छे से खयाल रखे वो ऐसा कोई भी काम ना करे जिस से पति या परिवार को किसी भी तेरह की परेशानी आए अथवा उन्हो में आपसी दरार पढ़े।

गरुण पुराण के मुताबिक जो पत्नी रोज नहाती है और अपने पति के लिए सजती सावर्ती है और अपने पति के लिए उपवास या व्रत रखती है अथवा कम बोलती है। जो पत्नी सामाजिक मर्यादाओं, अपनी संस्कृति अथवा धर्म का पालन करती है केवल वही स्त्री सही तरह से पत्नी मानी गई है।

ऐसी पत्नी पाकर पति स्वयं देवराज इंद्र के समान तेजस्वी हो जाता है व समस्त प्रकार के ऐश्वर्य से युक्त हो जाता है। इसके साथ-साथ पति का भी यह कर्तव्य बनता है कि वह अपनी पत्नी को हर परिस्थिति में समझे उसका सम्मान करें अथवा उसकी इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करे एवं उसकी कमजोरियों को नजरअंदाज करें उसे कभी भी नीचा दिखाने का प्रयास ना करें अथवा उसकी कमजोरियों पर उसका मजाक ना उड़ाए।

बातचीत में कभी अपशब्दों का प्रयोग ना करें और कभी भी अपनी पत्नी के मन को दुखाने वाला कार्य ना करें इन्हीं के चलते पति पत्नी में एक मनमोहक संबंध और एक अच्छा तालमेल बना रह सकता है जिसे कभी भी तोड़ा नहीं जा सकता है।

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