यमराज को मृत्यु का देवता माना जाता है। यदि यमराज स्वयं मृत्यु के देवता है तो इनकी मृत्यु कैसे संभव है। यह बात हास्यप्रद सी लगती है परंतु वेद और पुराण में इनकी मृत्यु की एक कथा बताई गई है। नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है। इसका को बताने से पहले यमराज के बारे में कुछ जान लेना बहुत जरूरी है। यमराज की एक जुड़वा बहन थी जिसे यमुना यही कहा जाता है।
युवराज भैंसे की सवारी करते हैं और यमराज की आराधना विभिन्न नामों से की जाती है। जैसे कि हम धर्मराज मृत्यु आतंक वैवस्वत काल बहुत समय पहले एक श्वेत पूरी थे जो भगवान शिव के परम भक्त थे और गोदावरी नदी के तट पर निवास करते थे। जब उनकी मृत्यु का समय आया तो यमदेव ने उनके प्राण। आने के लिए मैं तो पास को भेजा लेकिन श्वेत मुनि अभी प्राण नहीं त्यागना चाहते थे तो उन्होंने महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया। जब मृत्यु पाशविक मुनि के आश्रम में पहुंचे तो देखा कि आश्रम के बाहर भैरव बाबा पहरा दे रहे हैं। धर्म और दायित्व में बने होने के कारण जैसे ही मृत्य पास ने मुनि के प्राण हरने की कोशिश की तभी भैरव बाबा ने प्रहार करके मृत घोषित कर दिया।
वह जमीन पर गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई। यह देखकर यमराज अत्यंत क्रोधित हो गए और सुबह आकर भैरव बाबा को मृत्यु भाषा में बांध लिया। त्रिवेदी के प्राण हरने के लिए उन्होंने मेरे पास डाला तो श्वेत पूरी ने अपने इष्ट देव महादेव को पुकारा और महादेव ने तुरंत अपने पुत्र कार्तिकेय को भेजा। कार्तिकेय के वहां पहुंचने पर कार्तिकेय और यमदेव के बीच घमासान युद्ध हुआ। कांटे के सामने यमदेव ज्यादा देर तक टिक नहीं पाए और कार्तिकेय के एक प्रहार से यमराज जमीन पर गिर गए। साथ ही साथ उनकी मृत्यु।भगवान सूर्य को जब यमराज की मृत्यु का समाचार लगा तो वह विचलित हो गए।
ध्यान लगाने पर ज्ञात हुआ कि उन्होंने भगवान शिव की इच्छा के विपरीत श्वेत मुनि के प्राण हरने चाहे इस कारण यमराज को भगवान भोले के को को झेलना पड़ा। यमराज सूर्य देव के पुत्र हैं और इस समस्या के समाधान के लिए सूर्य देव भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करने का सुझाव दिया। सूर्य देव ने भगवान शिव की घोर तपस्या की जिससे भोलेनाथ प्रसन्न हो गए और उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा, तब सूर्यदेव ने कहा कि है महादेव यमराज की मृत्यु के बाद पृथ्वी पर भारी असंतुलन फैला हुआ है। अतः पृथ्वी पर संतुलन बनाए रखने के लिए यमराज को पुनः जीवित कर दे। तब भगवान शिव ने नंदी से यमुना का जल मंगवा कर यमदेव के पार्थिव शरीर पर छिड़का जिससे वह पुणे जीवित हो गए। दोस्तों!