कहा जाता है कि धरती पर 5000 से 6000 रहेगा। कुछ लोग मानते हैं कि वह 3000 वर्षों तक धरती में अलग-अलग रूप लेकर यहां से वहां मिलता रहेगा। बहुत से लोगों का ऐसा भी मानना है कि यह है जीवित है किसी एक बड़े धर्म युद्ध के लिए अलग-अलग लोगों की अलग-अलग मान्यता है। यह वह इंसान है जो महाभारत का सिर जीवित हैं और आज भी लोगों को दिखाई देते हैं। महाभारत काल से लेकर आज तक यह योद्धा धरती के अलग-अलग स्थानों पर भटक रहा है। महाभारत युद्ध में ऐसी क्या गलती की थी शिवदानी जिसका इनको इतना बड़ा। चुकाना पड़ रहा है।
महाभारत में तो बड़े-बड़े छेद हुए थे। आप हुए थे तो किसी को तो ऐसी सजा नहीं मिली। अगर भगवान ट्यूशन पर आपका अटूट विश्वास है और आप मानते हैं कि भगवान कृष्ण तो गलती कर ही नहीं सकते तो आप भी जानते होंगे। इसके पीछे कोई ना कोई कारण अवश्य होगा। चलिए जानते हैं उस योद्धा के बारे में द्रोणाचार्य कृपाचार्य की बहन का पुत्र था। द्रोणाचार्य का अपने पुत्र के प्रति बहुत ही ज्यादा स्नेह था। इसी स्नेह की वजह से ही द्रोणाचार्य को अपनी सोच के विपरीत कुरुक्षेत्र युद्ध में आदमियों का साथ देना पड़ा।
वह कौरवों के समर्थन में पांडवों के खिलाफ मैदान में उतरी थी। बात युद्ध के दिनों की है जब भीष्म पितामह की तरह गुरु द्रोणाचार्य भी पांडवों की विजय में सबसे बड़ी बाधा बनते जा रहे थे। श्री कृष्ण जानते थे कि गुरु द्रोण के जीवित रहते पांडवों की विजय असंभव है। इसलिए कृष्ण ने एक योजना बनाई जिसके तहत महाबली भीम ने युद्ध में अश्वत्थामा नाम के खाते कंपनी।यह हाथी मालन नरेश इंदर वर्मा का था। यह झूठी सूचना जब युधिष्ठिर द्वारा द्रोणाचार्य को दी गई तो उन्होंने अस्त्र शस्त्र त्याग दिए और समाधि सो कर बैठ गए। इस अवसर का लाभ उठाकर द्रौपदी के भाई दृष्टि अमन ने उनका सर धड़ से अलग कर दिया।
अपनी पिता की मृत्यु का समाचार मिलने के बाद दृढ़ पुत्र अश्वत्थामा गति तथा अपने पिता की मृत्यु का समाचार मिलने के बाद द्रोण पुत्र अश्वत्थामा व्यतीत हो गया। युद्ध के दौरान आशिक धामा ने दुर्योधन को वचन दिया कि वह अपने पिता की मृत्यु का बदला लेकर ही रहेगा। इसके बाद उसने किसी तरह से पांच लोगों की हत्या करने की कसम खाई। युद्ध की पराजय के बाद बचे हुए कौरवों की सेना के साथ मिलकर पांडवों के शिविर पर हमला किया। उसने पांडव सेना के कई गांवों पर हमला किया और मौत के घाट उतार दिया। उसने अपने पिता के हत्यारे जिसके मन और उसके भाइयों की हत्या की साथ उसने द्रौपदी के पांचों पुत्रों की भी हत्या कर डाली।
आपने इस कायराना हरकत के बाद।अश्वथामा शिविर छोड़कर भाग निकला। द्रौपदी के पांचों पुत्रों की हत्या की खबर जब अर्जुन को मिली तो उन्होंने क्रुद्ध होकर होती हुई द्रौपदी से कहा कि वह सुदामा का सर काट कर उसे अर्पित करेगा और सुदामा की तलाश में भगवान श्री कृष्ण के साथ अब्दुल निकल पड़े। अर्जुन को देखने के बाद आज हमारे सुरक्षित महसूस करने लगा। उसने अपनी सुरक्षा के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जो उसे द्रोणाचार्य ने दिया था। ग्रुप पुत्र होने पर भी उसे केवल ब्रह्मास्त्र छोड़ना आता था। वापस लेना नहीं आता था। तथापि अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। उधर श्री कृष्ण ने भी अर्जुन को ब्रह्मास्त्र छोड़ने की सलाह दी और सामान्य ब्रह्मास्त्र को पांडवों के नाश के लिए छोड़ा था।
अर्जुन के द्वारा ब्रह्मास्त्र को नष्ट करने के बाद अश्वत्थामा को रस्सी में बांधकर विरोध के पास लाया गया। आसमान को रस्सी से बना हुआ देख द्रौपदी का कोमल हृदय पिंगल गया और उसने अर्जुन से सुदामा को बंधन मुक्त करने के लिए कहा। आस्था के इस कृत्य के लिए भगवान श्री कृष्ण ने उसे शाप दिया कि तू पापी लोगों का। होता हुआ 3000 वर्ष तक निर्जन स्थानों में भटके गा। तेरे शरीर से सदैव रख की दुर्गंध नुसरत होती रहेगी तो अनेक रोगों से पीड़ित रहेगा तथा मानव और समाज भी तेरे से दूरी बनाकर रहेंगे। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण के साथ के बाद अश्वत्थामा आज भी अपनी मौत की तलाश में भटकता रहा, लेकिन उसे मौत नसीब नहीं हुई। ऐसा केवल भविष्य पुराण में ही नहीं बल्कि अलग-अलग पुराणों में भी इसका जिक्र किया गया है जिसमें यह भी कहा गया है कि जो लोग हजारों वर्षों से जीवित है और यहां वहां भटक रही है। यह सब कल्कि भगवान की सेना में शामिल होकर आ धर्म के विरुद्ध युद्ध लड़ेंगे।